मैं रहूं या ना रहूं , भारत ये रहना चाहिए

मैं रहूं या ना रहूं , भारत ये रहना चाहिए

मैं रहूं या ना रहूं , भारत ये रहना चाहिए

मैं रहूं या ना रहूं , भारत ये रहना चाहिए

सोनभद्र(एपीआई एजेंसी):- पद्मश्री शंकर महादेवन का यह गीत 18 वीं लोकसभा चुनाव के मद्दे नजर दूसरे चरण के मतदान को देखते हुए ज्यादा प्रासंगिक लग रहा है __ देश से है प्यार तो...... हर पल ये कहना चाहिए.... मैं रहूं या ना रहूं , भारत ये रहना चाहिए । अभी 6 चरणों का मतदान होना है । प्रथम चरण में 102 लोकसभा सीटों पर कुल 63 प्रतिशत मतदाताओं ने उम्मीदवारों के राजनीतिक भविष्य को वोटिंग महीन में बटन दबाकर लाक कर दिया है । 1 जून को अंतिम चरण के मतदान के बाद 4 जून को परिणाम दुनियां के सामने आ जाएगा । 2024 में जो भी सरकार बने वो भारत के लिए काम करें यही देश के 98 करोड़ मतदाताओं की इच्छा होनी चाहिए । सरकारें आयेंगी , जाएंगी लेकिन ये देश रहना चाहिए । इसी मंशा के साथ पहली लोकसभा के चुनाव से को सिलसिला शुरू हुआ है वह आजादी के अमृतकाल में 18वीं बार होने जा रहा है । आज की युवा पीढ़ी को यह शायद ज्ञात न हो कि पहली लोकसभा का चुनाव कैसे हुआ था ।
इस लिए यह जरूरी हो जाता है कि उस समय की स्थिति और परिस्थिति की जानकारी  साझा करना जरूरी है।

*ऐसे हुआ था पहला चुनाव*

26 नवंबर , 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाए गए संविधान को
26 जनवरी , 1950 को लागू कर दिया गया । 25 अक्टूबर , 1951 से
लेकर 21 फरवरी , 1952 तक लोकसभा और विधान सभाओं के चुनाव हुए थे । पहली लोकसभा के लिए 489 सदस्य निर्वाचित हुए थे ।
पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन थे जिनकी नियुक्ति प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और प्रथम गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल से सलाह ले कर की थी । उस समय 86 लोकसभा क्षेत्र ऐसे थे जहां एक ही सीट से दो सदस्य चुने गए थे , एक सामान्य और एक अनुसूचित जाति से 1949 उम्मीदवार चुनाव लड़ें थे। मतगणना 10 दिन तक चली थी कांग्रेस को 364 सीट और 44.99 फीसदी वोट मिले थे । सोसलिस्ट पार्टी को 12 सीटों पर जीत मिली थी और कुल 10. 59 प्रतिशत मत हासिल हुए थे । भारतीय  कम्यूनिष्ट पार्टी 16 सीट और 3. 29 प्रतिशत वोट मिला था ।भारतीय जनसंघ को 3 सीट , 3. 06 प्रतिशत मत , अखिल भारती राम राज्य परिषद को 3 सीट , 1. 97 प्रतिशत वोट , कृषक लोक पार्टी को 1 सीट , 1.41 फीसदी वोट ,पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट को 7 सीटें , 1.29 प्रतिशत वोट ,और किसान मजदूर प्रजा पार्टी को 9 सीट और 5. 79 प्रतिशत वोट मिला था। उस समय कुल 53 राजनीतिक दल पंजीकृत थे । चुनाव में कुल 533 निर्दल प्रत्यासी थे ।

*राजनीतिक दलों के नेता थे*
   
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता थे पंडित जवाहर लाल नेहरू जो यूपी
के फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे । लोकसभा में बहुमत दल के नेता थे जिन्हें राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी । भारतीय जनसंघ के नेता डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे जो लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे । इन्हे नेहरू मंत्रिमंडल में कानून मंत्री बनाया गया था । शेड्यूल कास्ट फेडरेशन जो बाद में रिपब्लिक पार्टी बनी इसके नेता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जी थे । किसान मजदूर प्रजा पार्टी के नेता आचार्य कृपलानी थे। सोसलिस्ट पार्टी के नेता प्रख्यातसमाजवादी विचारक डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और उप नेता जय प्रकाश नारायण थे । कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी था तो सोसलिस्ट पार्टी का निशान बरगद का पेड़ तथा जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक और प्रजा पार्टी का निशान झोपडी थी ।

  *ये थे नारे*

कांग्रेस के खिलाफ नारे लगते थे __' दो बैलों की जोड़ी है , एक अंधा एक कोढ़ी है '।' नगरी नगरी द्वारे द्वारे ढूंढू री नोकरिया , राम राम रटते रटते बीती री उमरिया ' । कांग्रेस के लोग जनसंघ को निशाना बनाते हुए कहते थे __ दीपक में तेल नाही , झोपडी अनहार बा , जनसंघ के वोट देना बिलकुल बेकार बा । सोसलिस्ट पार्टी के लोग कहते थे , भूखी जनता करे पुकार , मत लाओ कांग्रेस सरकार । कनफोड़वा प्रचार , पोस्टर युद्ध , गांव गांव , शहर शहर प्रचार रात दिन होता था । गाने गाए जाते थे , हांथ जोड़ी , पांव पड़ूं , अर्जी विनती करूं , समुझी बुझी वोट
देहे री वोटर वा ।

*वोट डालने की प्रक्रिया*
   
अलग अलग प्रत्यासियो के लिए अलग अलग बैलेट बॉक्स होते थे
जिसपर चुनाव चिन्ह बना रहता था । बैलेट पेपर मिलता था । मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के बॉक्स में मोहर लगा कर बैलेट पेपर को बैलेट बॉक्स में डाल देते थे । मतदान के अंत में बैले बॉक्स अभिकर्ताओं के समक्ष सिल पैक किए जाते थे। मतगणना के समय मतों की अलग अलग  गड्डी बनाई जाती थी । 100_ 100  की गड्डी बनकर मतों कीगिनती होती थी ।

*वोटर की स्थिति*
    
वोटर चाहे 1952 का हो या फिर आजादी के अमृतकाल 2024 का
हो , सभी की स्थिति कमोबेश वैसी ही रह गई । राजनीतिक दलों के द्वारा , राजनीतिक दलों के लिए , राजनीतिक दलों का लोकतंत्र जस
के तस साबित दस्तूर है । डॉक्टर लखन राम जंगली ठीक ही कहते
है , नेतन कर भारी बजार , वोट के के देवों नंदो । प्रयाग के व्यंगकार कवि यस मालवीय की रचना भी प्रासंगिक लगती है __ वो जुलूस से लौटे हैं , पांव दबाओ राम सुभग । आओ भाई राम सुभग , दरी बिछाओ राम सुभग देखों कितने नारे हैं , उन्हे पचाओ राम सुभग ।