शिव और पार्वती विवाह का कथा सुन मंत्रमुग्ध हुए श्रोता

शिव और पार्वती विवाह का कथा सुन मंत्रमुग्ध हुए श्रोता

शिव और पार्वती विवाह का कथा सुन मंत्रमुग्ध हुए श्रोता

शिव और पार्वती विवाह का कथा सुन मंत्रमुग्ध हुए श्रोता

कुशीनगर(एपीआई एजेंसी):- हाटा ब्लाक के गांव मुंडेरा उपाध्याय में चल रहे नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिनश्रीधाम वृन्दावन के आचार्य विश्वेश मणि उपाध्याय ऊर्फ पंकज जी महराज ने सती चरित्र और शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनाई। आचार्य कथावाचक ने कहा कि मनुष्य जीवन में जाने अनजाने प्रतिदिन कई पाप होते है। उनका ईश्वर के समक्ष प्रायश्चित्त करना ही एक मात्र मुक्ति पाने का उपाय है। उन्होंने ईश्वर आराधना के साथ अच्छे कर्म करने का आव्हान किया।

उन्होंने कहा कि व्यक्तियों को अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा व संग्रह आदि का त्यागकर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए। शिव -पार्वती विवाह का प्रसंग बताते हुए कहा कि, यह पवित्र संस्कार है, लेकिन आधुनिक समय में लोग संस्कारों से दूर भाग रहे है। जीव के बिना शरीर निरर्थक होता है, ऐसे ही संस्कारों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता। भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए। जब सती के विरह में भगवान शंकर की दशा दयनीय हो गई, सती ने भी संकल्प के अनुसार राजा हिमालय के घर पर्वतराज की पुत्री होने पर पार्वती के रुप में जन्म लिया।

पार्वती जब बड़ी हुईं तो हिमालय को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। एक दिन देवर्षि नारद हिमालय के महल पहुंचे और पार्वती को देखकर उन्हें भगवान शिव के योग्य बताया। इसके बाद सारी वार्ता शुरु तो हो गई, लेकिन शिव अब भी सती के विरह में ही रहे।  तीन हजार सालों तक उन्होंने शिव को पाने के लिए तपस्या की। इसके बाद भगवान शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ। कथा स्थल पर भगवान शिव( सोनल) और माता पार्वती (साधना)के पात्रों का विवाह कराया गया।

विवाह में सारे बाराती बने और खुशियां मनाई। कथा में भूतों की टोली के साथ नाचते-गाते हुए शिव जी की बारात आई। बारात का भक्तों ने पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। शिव-पार्वती की सचित्र झांकी सजाई गई। यजमान रमेश उपाध्याय व गीता देवी भोलेनाथ सपत्नी और भी परिवार के लोग विधि-विधान पूर्वक शिव पार्वती में सम्मिलित हुए महिलाओं ने मंगल गीत गाए और विवाह की सारी रस्म पूरी हुई।