भाव मन के न जाने कहाँ उड़ चले

भाव मन के न जाने कहाँ उड़ चले

पृष्ठ पर बादलों के लिखी गीतिका

पौन झोंके न जाने उड़ा ले चले

कुछ कहे कुछ सुने कुछ मिले इस तरह

भाव मन के न जाने कहाँ उड़ चले।।

साँझ के साथ में इक मुलाकात थी

दूर तारों की मानो बारात थी

रश्मियाँ धुँधलके से मिली इस तरह

यूँ सदियों से बिछड़ी कहीं रात थी।

धुँधलके ने लिखी जो कथानक वहाँ

रश्मियाँ वो कहानी कहाँ ले चले

कुछ कहे कुछ सुने कुछ मिले इस तरह

भाव मन के न जाने कहाँ उड़ चले।।

लड़खड़ाते कदम जो बढ़े रात में

साँस ने साँस से कुछ कहा रात में

रात भर रश्मियाँ गीत लिखती रहीं

भोर ने भी रचा पीत के पात में।

साँस ने साँस से जो कहा रात भर

गात बस गीत वो गुनगुनाते चले

कुछ कहे कुछ सुने कुछ मिले इस तरह

भाव मन के न जाने कहाँ उड़ चले।।

जो समय ने रचे गीत विस्तृत हुए

पलकों के स्वप्न सभी परिस्तृत हुए

 *तृप्ति* गीत अधरों ने लिखे इस तरह

गात के भाव सारे सुसज्जित हुए।

खुशबुएँ प्रीत से यूँ नहाई वहाँ

भाव की रागिनी हम सजाते चले

कुछ कहे कुछ सुने कुछ मिले इस तरह

भाव मन के न जाने कहाँ उड़ चले।।

 ✍️अजय कुमार पाण्डेय

        हैदराबाद